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क॒विं मृ॑जन्ति॒ मर्ज्यं॑ धी॒भिर्विप्रा॑ अव॒स्यव॑: । वृषा॒ कनि॑क्रदर्षति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kavim mṛjanti marjyaṁ dhībhir viprā avasyavaḥ | vṛṣā kanikrad arṣati ||

पद पाठ

क॒विम् । मृ॒ज॒न्ति॒ । मर्ज्य॑म् । धी॒भिः । विप्राः॑ । अ॒व॒स्यवः॑ । वृषा॑ । कनि॑क्रत् । अ॒र्ष॒ति॒ ॥ ९.६३.२०

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:63» मन्त्र:20 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:33» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:20


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अवस्यवः) रक्षा करनेवाले (विप्राः) मेधावी लोग (धीभिः) बुद्धि द्वारा (मर्ज्यं) शुद्धस्वरूप तथा (कविम्) सर्वज्ञ परमात्मा को (मृजन्ति) ध्यान का विषय बनाते हैं। वह परमात्मा (वृषा) जो कि कामनाओं को वृष्टि करनेवाला है, एवंभूत ईश्वर (कनिक्रत्) वेदवाणी को प्रदान करता हुआ (अर्षति) आनन्द की वृष्टि करता है ॥२०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा ने इस बात का उपदेश किया है कि जो लोग संस्कृत बुद्धि द्वारा उसका ध्यान करते हैं, उनको परमात्मा का साक्षात्कार होता है। इसीलिये उपनिषद में कहा है कि “दृश्यते त्वग्र्या बुद्ध्या सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिमिः” कि सूक्ष्मदर्शी लोग सूक्ष्मबुद्धि द्वारा उसके साक्षात्कार को प्राप्त होते हैं ॥२०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अवस्यवः) रक्षाकर्तारः (विप्राः) मेधाविनः (धीभिः) बुद्ध्या (मर्ज्यम्) शुद्धस्वरूपं तथा (कविम्) सर्वज्ञं परमात्मानं (मृजन्ति) ध्यानविषयं कुर्वन्ति। स परमात्मा (वृषा) अभिलाषपूरकः एवम्भूतः परमेश्वरः (कनिक्रत्) वेदवाणीं प्रददत (अर्षति) आमोदस्य वृष्टिं करोति ॥२०॥